राहु कर सकता है भारत की शान्ति को भंग

imagesराहु कर सकता है भारत की शान्ति को भंग भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की भविष्यवाणी करने वाले पंडित एच.आर. शास्त्री जी स्वतंत्र भारत की कुण्डली का गहन अध्यन कर बताया कि 29-1-2016 से 26-8-2017 तक राहु सिंह राशि में रहेगा जो भारत देश की अखंडता को तोड़ने का प्रयास करेगा तथा आतंकवाद को बढ़ावा देगा और भारत की शांति भंग करने का प्रबल प्रयास करेगा! शास्त्री जी ने 15-8-1947 भारत स्वतंत्रता दिवस की कुण्डली के बारे में बताया कि प्राप्त जानकारी के अनुसार 15-8-1947 को रात्रि 12 बजे भारत स्वतंत्र हुआ था! जिस समय भारत स्वतंत्र हुआ था उस समय ज्योतिष गणना के अनुसार वृष लग्न उदित था, उदित लग्न का कारक ग्रह शुक्र, शनि व बुद्ध है, शुक्र लग्नेश खष्टेश,शनि भाग्येश, राज्येश, बुद्ध धनेश व पंचमेश ये तीनो कारक ग्रह लग्न से तृतीय भाव में चंद्रमा की कर्क राशि पर चंद्रमा के साथ विराजमानहै! भारत अश्लेषा नक्षत्र के प्रथम चरण में स्वतंत्र हुआ! स्वतंत्रभारत की जन्म राशि कर्क व स्वामी चन्द्रमा है! चन्द्रमा तृतीय भाव में स्वग्रही है, चन्द्रमा, शुक्र, शनि व बुद्ध चारो ग्रह तृतीय भाव में सूर्य के साथ होने से अस्त है! राहु लग्न में और केतु सप्तम भाव में विराजमान है, इसी राहु के कारण भारत की देह के दो टुकड़े हो गये और पाकिस्तान के नाम से एक टुकड़ा भारत के अंग से अलग हो गया और उसके बाद कुछ न कुछ संघर्ष चलता ही रहता है! लग्न से तीसरे पराक्रम भाव पर शुक्र, शनि व बुद्ध कारक ग्रहों का होना भारत का पराक्रम ( पुरुषार्थ ) सदेव जाग्रत रहेगा और कभी हार नहीं मानेगा, बल्कि अपने बाहुबल की शक्ति के सम्बन्ध में भारत सदेव उन्नति पर रहेगा! इसके अलावा शत्रु स्थान पर अष्टमेश गुरु ब्रहस्पति बेठे है! इसलिए पुरे विश्व के अंदर शत्रु पक्ष में भारत का मान और गोरव तथा बडपन्न ऊँचा रहेगा, परन्तु धनेश बुद्ध के अस्त होने से और ध्दादशेष मंगल के धन भाव पर होने से भारत के कोष में में धन का अभाव अत्यधिक बना रहता है,तथा धन अधिक खर्च होता रहेगा! धन भाव का स्वामी बुद्ध पंचमेश होकर पराक्रम भाव में बेठा है, और लग्नेश, भाग्येश, राज्येश व सुखेश से सहयोग प्राप्त किया है और इन कारक ग्रहों के साथ बुद्ध का स्थान सम्बन्ध है, इसी के फलस्वरूप भारत का कोई भी काम धन के अभाव के कारण नहीं रुक पायेगा, और न ही दुसरो पर आश्रित रहेगा ! भारत अपनी शक्ति पर स्वतंत्र रहेगा, और विश्व भारत की पोरुष शक्ति का लोहा मानता रहेगा ! लग्न का स्वामी शुक्र अस्त होने से भारत की जनता को कुछ कष्ट पीड़ा झेलनी पड़ेगी, और लग्न में राहु और सप्तम भाव पर केतु होनेसे भारत को अंदरुनी शत्रुओ से विशेष सावधान रहना होगा ! ये आस्तीन के साँप बनकर भारत में जहर घोलते रहेंगे ! भाग्येश और राज्येश की सातवीं पूर्ण दृष्टी धर्म व भाग्य भाव पर होने से शनिदेव भारत की पूर्ण रक्षा करते रहेंगे, और भारत विश्व में धर्म गुरु के नाम से जाना जायेगा, और भारत धर्म परायण देश कहलायेगा ! वर्तमान में 29-1-2016 से 26-8-2017 तक राहु के सिंह राशि पर होने से भारत कीसरजमी पर आतंकवाद का साया मंडराता रहेगा, क्योकि सूर्य की राशि पर राहु आने से यह ग्रहण योग भी बनेगा और गुरु सिंह राशि पर विराजमान होने से यह 11-8-2016 तक गुरु राहु चांडाल योग भी बनता है जिसके कारण असामाजिक तत्वों व्दारा और आतंकवाद व्दारा भारत की शांति भंगकरने का पाकिस्तान व्दारा पुरा प्रयास किया जायेगा ! 26-1-2017 से 23-1-2020 शनि भाग्येश और राज्येश लग्न से अष्टम भाव पर अपने शत्रु ब्रहस्पति की धनु राशि पर आयेंगें ! यह समय भारत देश के लिए विशेष सावधानी बरतने वाला समय रहेगा ! इसके बाद 22-11-2020 से 11-4-2022 तक जब राहु वर्ष राशि पर और केतु व्रश्चिक राशि पर रहेंगे इसी काल खण्ड में देव गुरु ब्रहस्पति 20-11-2020 से 21-11-2021 तक अपनी नीच राशि मकर में भाग्य भाव पर रहेंगे, यह समय भारत देश के लिए 1947 जेसा रहने के प्रबल योग बनेंगे भारत देश में जगह-जगह उपद्रव होंगे, बमकांड अग्निकांड रेल दुर्घटना वायु हवाई जहाज दुर्घटना इत्यादि अधिक होने के योग बनेंगे, इससे पूर्व 10-2-1961 से 24-2-1962 तक गुरु के नीच राशि भाग्य भाव पर होने से ऐसे हालात बने थे!ज्योतिष गणना के अनुसार स्वतंत्र भारत का जन्म 15-8-1947 से 4-12-1947 तक बुद्ध की महादशा में केतु की अंतरदशा में हुआ था ! 4-12-1947 से 4-10-1950 तक बुद्ध महादशा में शुक्र की अंतरदशा में 26-1-1950 को भारत का संविधान लागु हुआ था ! वर्तमान में 10-7-2011 से 10-7-2029 तक राहु की महादशा रहेगी ! इसके बाद 10-7-1929 से 10-7-2045 तक देव गुरु ब्रहस्पति की महादशा 16वर्ष रहेगी, यह समय भारत देश के लिए अत्यधिक हानिकारक व कष्ट कारक समय रहेगा ! क्योकि ज्योतिष गणना में वृष लग्न का अष्टमेश गुरु प्रबल शत्रु माना गया है ! वृष लग्न में गुरु को नष्ट करने की प्रबल शक्ति प्रदान की जाती है, वृष लग्न में गुरु – सर्वाधिक अकारक ग्रह माना जाता है क्योकि यह दो अकारक स्थानो का स्वामी है ! अष्टमेश होने से इसमें नष्ट करने की प्रबल शक्ति आजाती है और एकादशेश होने से वह क्रूर एवं अकारक भी बन जाता है, गुरु की महादशा अधिकतर मारक ही रहती है परन्तु दुसरे शुभ ग्रह का सहयोग हो जाये तो यह मारक न होकर बीमारी, परेशानी, बाधाए एवं कष्ट पीड़ा तो देता ही है!विश्वविख्यात ज्योतिषाचार्यपंडित एच.आर. शास्त्री

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